ग़ज़ल (आरजू बनवास की)
नरक की अंतिम जमीं तक गिर चुके हैं आज जो
नरक की अंतिम जमीं तक गिर चुके हैं आज जो
नापने को कह रहे , हमसे बह दूरियाँ आकाश की
इस कदर अनजान हैं ,हम आज अपने हाल से
खोजने से मिलती नहीं अब गोलिया सल्फास की
आज हम महफूज है क्यों दुश्मनों के बीच में
दोस्ती आती नहीं है रास अब बहुत ज्यादा पास की
बँट गयी सारी जमी ,फिर बँट गया ये आसमान
क्यों आज फिर हम बँट गए ज्यों गद्दिया हो तास की
हर जगह महफ़िल सजी पर दर्द भी मिल जायेगा
हर कोई कहने लगा अब आरजू बनवास की
मौत के साये में जीती चार पल की जिंदगी
क्या मदन ये सारी दुनिया, है बिरोधाभास की
ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना